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सुंदर कान्ड में सफलता के सूत्र- भाग ३

राम काजु करि फिरि मैं आवौं।सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं।।
तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई।।
कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना।।
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा।कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।।
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।।

जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा।।
सतजोजन तेहिं आनन कीन्हा।अति लघुरूप पवनसुत लीन्हा।।
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा।।
हनुमान बोले राम काज करके माँ सीता किस हाल किस दशा में हैं प्रभु को बता दूँ तब मैं आपकी सेवा में तत्पर हो जाऊंगा अर्थात आप मुझे अपना क्षुधा ग्रास बना लीजिएगा माता, किंतु सुरसा तो आयी ही थी परीक्षा लेने आखिर हनुमान के सत्य कथन को कैसे मान लेती, उनकी बात मान लेते ही देवों का उसके भेजने का उद्देश्य ही निष्फल हो जाता तभी उसने हनुमान को खा जाने का प्रयास शुरू कर दिया। एक तरफ सुरसा अपने मुख को बराबर बढ़ा रही है तो दूसरी तरफ हनुमान अपने शरीर को।  प्रश्न उठता है कि हनुमान इतने शक्तिशाली थे तो सुरसा को अपने मार्ग से क्यों ना हटा दिया।  
नहीं, यही तो उनकी बुद्धि का परिचय मिलता है कि उनके पास इतनी समझ थी,इतनी अंतः शक्ति थी कि वो पहचान सकें कि कौन सज्जन है और कौन दुर्जन? 
माँ सुरसा ने अपने मुख को सौ योजन तक फैलाया नहीं कि हनुमान ने अति लघु रूप धारण कारण उनके मुख में प्रवेश किया और पुनः बाहर आ गये। प्रणाम कर जाने की आज्ञा मांगी। 
कुछ ऐसा ही होता है हमारे और आपके जीवन में, ना जाने कितने लोग मिलते हैं जिन्हें मिलके देखके ऐसा लगता है कि बस ये हमें बरबाद करने में तुला है यही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है हमारी सफलता में I

  मुख्य रूप से अपने घरों में ऐसा महसूस होता है जब हमें हमारे बुजुर्ग, बड़े, हमें किसी कार्य करने को रोकते हैं।
हमें वो सबसे बड़ी बाधा नज़र आते हैं भी, सोचिए क्या कोई अपना जो वास्तव में अपना है आपका बुरा क्यों चाहेगा बस वो आपको सचेत करना चाह रहा है।  जरूरत है ये जानने की कि कौन सज्जन है और कौन आपके लिये दुर्जन, विकट घड़ी में परीक्षा को तैयार रहिए तभी सही और गलत को पहचान पाएंगे, पूर्वाग्रह से ग्रसित हो किसी को ना पहचाने और ना कोई निर्णय लें यही इस प्रसंग का सार है। 


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